योग क्या है: योग के प्रकार, नियम व जीवन में योग का महत्व (What is Yoga: types, rules and Importance of yoga in life in Hindi)

मेरे इस blog में योग क्या है – योग के प्रकार, नियम व जीवन में योग का क्या महत्व है इसके बारे में बताया गया है|

योग क्या है (What is yoga)?

योग शब्द संस्कृत की युज धातु से लिया गया है जिसका अर्थ है एकजुट होना या एकीकृत होना| इस प्रकार योग का अर्थ है जुड़ना| अर्थात योग द्वारा हमारा शरीर व मन आध्यात्मिक व भावनात्मक रूप से जुड़ता है|

योग, जीवन को स्वस्थ रखने की कला भी है और विज्ञान भी | योग में हम आसन, प्राणायाम व ध्यान द्वारा मन, श्वास व शरीर में सामंजस्य करना सीखते हैं| आसन शरीर में, प्राणायाम प्राणों में तथा ध्यान मन में सामंजस्य लाता है| आसन शरीर को स्थिर करते हैं तथा प्राणायाम व ध्यान मन को एकाग्र करते हैं| और मन की एकाग्रता तभी संभव है जब शरीर स्वस्थ हो| इस प्रकार योग का अभ्यास करके अपने व्यक्तित्व को स्थिर (stable) रखा जा सकता है| योग तनाव-मुक्त होने में भी हमारी मदद करता है|

योग सिर्फ आसनों तक ही सिमित नहीं है, बल्कि योग का आंतरिक विज्ञान के रूप में भी प्रयोग किया जाता है| इसके द्वारा व्यक्ति शरीर व मन के बीच सामंजस्य स्थापित कर आत्म साक्षात्कार करता है और वह योगी कहलाता है| योगी व्यक्ति ही मुक्तावस्था, निर्वाण, कैवल्य या मोक्ष के मार्ग पर जाता है| व्यक्ति के मन के विचारों का असर उसके शरीर के स्वास्थ्य पर पड़ता है| मन में स्वस्थ विचार होंगें तो शरीर भी स्वस्थ होगा|

What is Yoga in Hindi

योग के प्रकार (Types of yoga)

योग के कई प्रकार माने गए हैं जैसे राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, हठ योग, ध्यान योग, मंत्र योग, तंत्र योग, लय योग आदि| हम यहाँ योग के चार प्रकारों का विवरण करेंगे| राज योग, कर्म योग, भक्ति योग व ज्ञान योग|

कर्म योग

यह हमें कर्म के मार्ग पर चलाता है तथा नकारात्मक होने से बचाता है| कर्म योग में हम शरीर का प्रयोग करते हैं| जब हम अपना काम करते हैं, दूसरों की सेवा करते हैं, निस्वार्थ भाव से जीवन जीते हैं तो यह कर्म योग कहलाता है|

भक्ति योग

भक्ति योग को मन का योग माना गया है | इसमें हम भावना का प्रयोग करते हैं| यह हमें भक्ति के मार्ग के बारे में बताता है| यह भावनाओं को नियंत्रित करता है| यह मन में सकारात्मकता लाकर मन को ईश्वर की ओर लगाने में मदद करता है|

ज्ञान योग

ज्ञान योग बुद्धि का योग है| ज्ञानार्जन करना ही ज्ञान योग है| इससे बुद्धि का विकास होता है|)

राज योग

राज योग में राज का अर्थ है शाही| यह सभी योगों का राजा कहलाता है| इसे अष्टांग योग भी कहा जाता है| इसके आठ अंग हैं| इन्हें दो भागों में बांटा गया है| 1: बहिरंग2: अंतरंग | प्रथम पांच अंग बहिरंग तथा अंतिम तीन अंग अंतरंग कहलाते हैं| प्रथम पांच अंगों का अभ्यास योग-विद्या में प्रवेश करने की तैयारी माना गया है| इनका अभ्यास साधारण लोग कर सकते हैं| लेकिन बाकी तीन अंगों का अभ्यास केवल ऋषि, मुनि और योगी ही कर पाते हैं| अष्टांग योग के आठ अंग निम्नलिखित हैं:

1. यम:

यह समाज के उद्धार के लिए है| यह व्यक्ति के मन से सम्बंधित है| सामाजिक जीवन जीना ही यम कहलाता है| अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी| इसका अभ्यास करके व्यक्ति अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता व त्याग करना सीखता है| हम पेड़ लगाकर छाया देते हैं और प्याऊ लगाकर पानी आदि| ये हम समाज को देते हैं और समाज आने वाली अगली पीढ़ी को देता है|

2. नियम:

नियम वे ढंग हैं जो व्यक्ति के शारीरिक अनुशासन से सम्बंधित हैं| यह शरीर व अपने व्यवहार को अच्छा बनाने के लिए है| सुबह समय पर उठकर, fresh होकर, नहाना-धोना, योग-कक्षाओं में जाना, अपने व शरीर को ठीक रखना, ये सभी नियम में आता है|

3. आसन:

शरीर को अधिक से अधिक समय तक एक विशेष स्थिति में रखना आसन कहलाता है| आसन का अभ्यास शरीर तथा मन में स्थायित्व लाने में सक्षम है| मांसपेशियों पर खिंचाव लगाना व ढीला करना| शरीर को दाएं मोड़ना, बाएं मोड़ना, ताकि मांसपेशियां नर्म हो सकें तथा शरीर ठीक प्रकार से कार्य कर सके और हम अपनी बीमारियों को ठीक कर सकें आदि|

4. प्राणायाम:

प्राणायाम का अर्थ है प्राण पर नियन्त्रण करना| श्वास लेना, श्वास छोड़ना व श्वास रोक कर रखना अपने आप में प्राण नहीं है, बल्कि एक संकेत है कि प्राण क्रियाशील है| प्राण कोई भौतिक वस्तु नहीं है , इसलिए हम इसे देख नहीं सकते| इसके अस्तित्व का अनुमान श्वसन प्रक्रिया से अवश्य कर सकते हैं| प्राणायाम केवल श्वास को ही नहीं बल्कि, इन्द्रियों और मन को भी सुव्यवस्थित करने की एक विधि है| सांस को अंदर खींचने व बाहर निकालने का सुव्यवस्थित व नियमित अभ्यास प्राणायाम कहलाता है| यह मन पर नियन्त्रण रखने में सहायक है| इससे मानसिक विकार दूर होते हैं|

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5. प्रत्याहार:

प्रत्याहार के अभ्यास से व्यक्ति अपनी इन्द्रियों के द्वारा सांसारिक विषयों का त्याग करता है तथा अंतर्मुखी हो जाता है| वह अपने मन व इन्द्रियों को उनकी सम्बंधित क्रिया से हटाकर एकीकरण का प्रयास करता है| जैसे जब मन अंदर बाहर डोलता है| कभी मन करता है आँखें खोलकर देखूं, कभी मन करता है आँखें बंद कर लूँ| जब मन इन स्थितियों को control करके अंदर जाना सिख जाता है तो यह प्रत्याहार है|

6. धारणा:

धारणा एकाग्रता बढ़ाने के लिए है| इसमें व्यक्ति किसी एक विषय पर ध्यान लगाता है| जैसे नासिका पर हाथ लगाए बिना मन से महसूस करके अनुलोम-विलोम करना धारणा है| या कपालभाति करते समय रीढ़ पर चक्रों पर ध्यान लगाने से मूल चक्र प्रभावित होता है, यह भी धारणा है| धारणा के अभ्यास में व्यक्ति मन व योग के एकीकरण का प्रयास करता है, यह एकीकरण बाद में ध्यान में परिवर्तित हो जाता है|

7. ध्यान:

यह चित को शुद्ध करने के लिए है| यह धारणा से आगे की अवस्था है| इसमें व्यक्ति सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर अपने आप में अंतर्ध्यान हो जाता है| अन्तर्मुखी हो जाना ही ध्यान है| अपने आप को जानना भी ध्यान है| मैं और मेरा शरीर कैसे कार्य करता है यह भी ध्यान है| ध्यान में व्यक्ति किसी भी विषय पर सोच सकता है| व्यक्ति पांचों तत्व पृथ्वी, जल, वायु आकाश के बारे में भी सोच सकता है| अन्तर्मुखी होकर कोई भी कार्य करना या ध्यान पूर्वक कोई भी कार्य करना ध्यान है| ध्यान सहजता से एक ही जगह बैठकर किया जाता है| आसन ठीक हो, बैठने की स्थिति ठीक हो, आसपास का वातावरण शुद्ध हो, मन शांत हो, तो ध्यान प्रभावशाली तरीके से हो पाता है|

8. समाधि:

यह राजयोग की अंतिम अवस्था है| जैसे-जैसे ध्यान गहरा होता जाता है वह समाधि का रूप ले लेता है| इस में शरीर, मन, इन्द्रियां आदि सभी शिथिल हो जाते हैं| यह स्थिति सबसे श्रेष्ठ है|

आजकल अष्टांग योग में से योग के तीन अंग ही प्रचलित हैं जिनका अभ्यास साधारण लोगों द्वारा किया जाता है| वे हैं – आसन, प्राणायाम व ध्यान|

योग के नियम या योग करते समय ध्यान रखने योग्य बातें (Things to keep in mind)

  • योगासन करने से पहले कुछ व्यायाम अवश्य करना चाहिए जिससे शरीर warmup हो सके
  • आसनों के अभ्यास के समय शरीर के अंगों की गति तीव्र नहीं होनी चाहिए और शरीर को झटका भी नहीं आने देना चाहिए|
  • आसनों को तीव्र गति से नहीं किया जाता, इसलिए शक्ति का अपव्यय नहीं होता|
  • आसन करते समय जिस आसन का अभ्यास चल रहा हो, उसी से सम्बन्धित अंगों पर अपने ध्यान को केन्द्रित करना चाहिए|
  • यदि हम व्यायाम/योग नहीं करते तो मांसपेशियां संकुचित हो जाती हैं और शरीर में कड़ापन आ जाता है| इसलिए योग अवश्य करना चाहिए|
  • शुरू में आसनों का अभ्यास कुछ सेकंड तक करना चाहिए| धीरे-धीरे समय को बढ़ाना चाहिए|
  • किसी भी आसन में एक से तीन मिनिट तक रुकने का अभ्यास करना उचित माना गया है|
  • आसनों के अभ्यास के बाद सुखासन या शवासन में विश्राम करना चाहिए|
  • आसनों का अभ्यास स्वच्छ, खुले व हवादार स्थानों पर करना चाहिए|

जीवन में योग का महत्व (Importance of yoga in life in Hindi)

योग का हमारे जीवन में बहुत महत्व है| आज हम सभी को योग करने की जरूरत है| चाहे बच्चा हो या किशोर, वृद्ध हो या महिला, गृहस्थ हो या कर्मचारी सभी को स्वस्थ रहने की जरूरत है| योग द्वारा मांसपेशियां मजबूत बनती हैं, हड्डियां लचीली बनती हैं, हृदय, मस्तिष्क व गुर्दे आदि पुष्ट होते हैं, स्त्राव ग्रन्थियों से स्त्राव सही प्रकार से होता है, पूरे शरीर में रक्त का संचार सुचारू रूप से होता है, पैर से सिर तक पूरा शरीर प्रभावित होकर स्वस्थ बनता है| शरीर स्वस्थ होने से मन शांत होता है, बुद्धि तीव्र व कुशाग्र होती है| स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है|

आजकल लोग अपनी व्यस्त जीवनशैली होते हुए भी कुछ समय निकालकर केवल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम करते हैं| परन्तु केवल व्यायाम द्वारा शरीर को सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं रखा जा सकता| केवल योग ही है जिसके द्वारा शरीर के साथ-साथ मन-मस्तिष्क को भी स्वस्थ रखा जा सकता है| योग करने से व्यक्ति के मस्तिष्क को ताकत मिलती है, दिमाग शांत होता है, तनाव दूर होता है तथा शारिरिक शक्ति का विकास होता है| योग का नियमित अभ्यास करने से निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति होती है जो जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं|

1. तनाव से मुक्ति

योग को अपने जीवन का हिस्सा बना कर हम तनाव मुक्त जीवन जी सकते हैं| योग के अंग आसन, प्राणायाम व ध्यान को अपनाकर हम तनाव, अवसाद व चिंता से मुक्त होकर अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हैं| प्राणायाम व ध्यान का अभ्यास करने से तो चिंता, तनाव, अवसाद व क्रोध का निदान होता ही है, लेकिन योग-आसनों का नियमित अभ्यास करने से भी तनाव व चिंता से मुक्ति मिलती है| शशकासन, भुजंगासन, सर्पासन, सेतुबंधासन, पादोतानासन, सर्वांगासन जैसे आसनों का नियमित अभ्यास करने से तनाव (stress), अवसाद व चिंता को कम करने में मदद मिलती है|

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2. सकारात्मक (Positive) मानसिकता का विकास

मन की एकाग्रता को योग द्वारा बढ़ाया जा सकता है| प्राणायाम व ध्यान का अभ्यास करने से concentration व confidence बढ़ता है व मानसिक शांति मिलती है तथा मस्तिष्क को ताकत मिलती है| इससे हमारे विचारों में सकारात्मकता आती है| अपनी श्वास को नियंत्रित करके हम अपने शरीर को नियंत्रित कर सकते हैं तथा अपने मन को शांत कर सकते हैं| इस प्रकार योग द्वारा तनाव, अवसाद, थकान तथा चिंता सम्बंधी विकारों को दूर करने में सहायता मिलती है| इससे सकारात्मक मानसिक विकास होता है|

3. शारीरिक स्वास्थ्य का विकास

आज बहुत से लोग केवल मोटापे से परेशान हैं| लेकिन योग द्वारा मोटापे के साथ-साथ पूरे शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है| योग करने से शरीर की आंतरिक उर्जा में सुधार आता है जो शारीरिक शक्ति का विकास करने में मदद करता है| योग स्नायुतंत्र (nervous system) तथा कंकाल तंत्र (skeletal system) को सुचारू रूप से कार्य करने में सहायता करता है| योग ह्रदय व नाड़ियों के लिए हितकर अभ्यास है| यह Diabetes, सांस की समस्या, High and Low B.P. आदि विकारों को राहत देने में लाभदायक है| इस प्रकार योग द्वारा शारीरिक स्वस्थ्य का विकास होता है|

4. निरोग्यता

योग द्वारा हम निरोग्यता को प्राप्त कर सकते हैं| निरोग व्यक्ति वह है जो स्वस्थ है| स्वस्थ व्यक्ति वह है जो शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक व सामाजिक रूप से स्थिर हो| ऐसा स्थिर व स्वस्थ व्यक्ति ही निरोगी हो सकता है जो योग द्वारा ही संभव है| योग का अभ्यास हमारे शरीर को प्रभावित कर स्वस्थता की ओर ले जाता है|

5. सहनशीलता

जो व्यक्ति विपरीत परिस्थिति में भी धैर्य नहीं खोता वह सहनशील कहलाता है | यह सहनशीलता केवल योगाभ्यास द्वारा प्राप्त की जा सकती है|

6. जीवनशैली में सुधार

योगाभ्यास करने वाला आदर्श दिनचर्या का पालन करता है| जैसे नियत समय पर उठना या सूर्य उदय होने से पहले उठना, समय पर सोना, समय पर भोजन करना (न केवल समय पर भोजन करना बल्कि संतुलित व पौष्टिक आहार लेना), योग का अभ्यास करना आदि| इस प्रकार योगाभ्यास द्वारा व्यक्ति की जीवन शैली में सुधार आता है|

योग करने से न केवल हमारा शारीरिक विकास होता है बल्कि मानसिक, आध्यात्मिक, भावनात्मक तथा सामाजिक विकास भी होता है| योग द्वारा नियमित अभ्यास करने से तनाव से भी मुक्ति पाई जा सकती है|

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इस blog में हमने जाना कि योग क्या है (What is yoga)?, योग के प्रकार (Types of yoga), नियम व जीवन में योग का क्या महत्व है (Rules and Importance of yoga)|

इस विषय से सम्बंधित कोई भी जानकारी चाहिए या कोई सुझाव आपके पास हो तो comment box में लिख सकते हैं|

Babita Gupta

M.A. (Psychology), B.Ed., M.A., M. Phil. (Education). मैंने शिक्षा के क्षेत्र में Assistant professor व सरकारी नशा मुक्ति केंद्र में Counsellor के रूप कार्य किया है। मैं अपने ज्ञान और अनुभव द्वारा blog के माध्यम से लोगों के जीवन को तनाव-मुक्त व खुशहाल बनाना चाहती हूँ।

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